एक खुली क़िताब हूँ मैं
जिधर से भी पढ़ो
समझ में आ जाऊँगी
शर्त ये है मगर
तुम्हें पढ़ना आना चाहिए
स्पर्श- स्पंदन से परे
गहरी सुवास हूँ मैं
खुद अपनी ही बॉस हूँ मैं
चेहरे को देखोगे
तो खो जाओगे
शब्दों को ढ़ूंढ़ोगे
तो पछताओगे
भावों को बूझोगे
तो उलझ जाओगे
नीची निगाहों से निहारो
मन-मस्तिष्क को भेद दूँ
तीखी कटीली फांस हूँ मैं
न आँखों देखी
न कानों सुनी
ऐसी बात हूँ मैं
खुद अपनी ही बॉस हूँ मैं
लफ्ज़- लफ्ज़ में
गहरे अर्थ छिपाए हूँ मैं
सफ़े-सफ़े में
ज़िंदगी बसाए हूँ मैं
हर एक एहसास हूँ
जीने की आस हूँ मैं
प्रकृति की श्वास हूँ
समझो तो पास हूँ मैं
वरना एक राज़ हूँ
बहुत खास हूँ मैं
खुद अपनी ही बॉस हूँ मैं
फिर भी एक खुली
क़िताब हूँ मैं ......