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'वो मुझे बुला रहे थे' by Sudhi Siddharth

  • Writer: Under the Raintree Festival
    Under the Raintree Festival
  • Oct 11, 2019
  • 1 min read

आज सुबह मेरे ख्यालों ने मुझे जगाया मेरे ख्याबों ने मुझे कस के गले लगाया और इत्तफ़ाकन, मेरे ज़हन में पड़े कुछ मदहोश अलफ़ाज़ कागज़ पर उतर आये मेरा हाथ पकड़कर ऐसे बैठाया जैसे कुछ कहना चाहते हो, मुझसे कुछ सुनना चाहते हो ऐसे भी कोई रुबरु होता है भला.....


वो मुझे बुला रहे थे, मैं उन्हें बुला रही थी वो इशारे कर रहे थे, मैं नज़र झुका रही थी

मैं ढूंढ़ती हूँ जिसको, खोया है किस गली में  हर रुह में तलाशा, मिलता नहीं किसी में

और फ़िर मेरे बहुत करीब आकर उन्होंने कुछ ऐसा कहा....

तुम ढूंढती हो जिसको, सजदे में है तुम्हारे हर रुह की तुम छोड़ो, देखो नज़र उठके

वो सवाल चुन रहे थे, मैं सिमटती जा रही थी

वो मुझे बुला रहे थे.......


ये भूरी भूरी आँखें, कहकर वो मुस्कुराए अश्कों से जाकर कह दो, कहीं और घर बनाए मैंने कहा संभलकर, खंज़र हैं ये निगाहें आँखों का रंग मेरी, करता नहीं वफ़ाएं

वो दुआएं दे रहे थे, मैं दवाएं ले रही थी


वो मुझे बुला रहे थे, मैं उन्हें बुला रही थी वो इशारे कर रहे थे, मैं नज़र झुका रही थी  

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