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'मेरी सहेली' by Suvarna Vetale

  • Writer: Under the Raintree Festival
    Under the Raintree Festival
  • Oct 12, 2019
  • 1 min read

जोर से बोला प्यार से बोला हर तरीके से बोला उसने है मेरी सहेली ना सुना किसीने उसे ना माना किसीने उसे


दियी सहूलियत सिर्फ उसीको जिसके होगे भाई बाप बेटा पति होगी रिश्तों की त्योहारों की भड़मार


सोच कर उन्होंने नहीं की शादी किया है तय होना जिम्मेदार खुद खुदका सीमाएं बनानी खुदने खुदकी जीना खुदने किए  नियमों पर ना माना एकतरफा नियमों को ना खेली धरमों की खेली


वो पढ़ते , चर्चा करते एकदुसरे को आगे बढ़ाते समाज को देखते नए नजरिए से करते नए समाज का निर्माण बचाते खुदको अपनी डोर किसिके हाथ लगने से विरोध करते कटपुतली बनने से

वो है गुलशन सदा खुश ना पेहरा चाहते किसिका ना किसी के फतवे वो है स्त्री ना देवी ना दासी है जिंदा इंसान

2 Comments


Sania Khan
Sania Khan
Oct 15, 2019

Very nice poem good for writing ❤

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Firdos Shaikh
Firdos Shaikh
Oct 14, 2019

Love the poem 😍❤️ Awesome poem by an amazing women♥️❤️

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