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'जीतने का जज़ज़्बा' by Debalina Haldar

  • Writer: Under the Raintree Festival
    Under the Raintree Festival
  • Sep 25, 2019
  • 1 min read

कुछ तो बात है


उन लोगो की बातों में


जो कभी रात के अँधेरे से


कभी दिन के उजाले में -


ज़ोर ज़ोर से चिल्लाके


या कभी पुकारे खामोशिया


मेरे कामियाबी की सीडिया


मेरी मुस्कराहट और तन्हाईया…


याद होगी ज़रूर ,


वो मुश्किलें तकलीफे बड़ी


जो हँस के मैंने ही


उठा ली ज़िम्मेदारी सारी…


किधर है नज़रे तेरी


ये मेरी जिस्म की रूह से नहीं


उन अनगिने घंटो की मेहनत


और वो बातें उनकाही…


जो बिना सुने


आ गयी समझ मुझे थी


और कहना बाकी क्या था


यही फिर ठान मैंने ली -


वो बाते उनकाही


बन गयी बुनियाद कामियाबी की


वो आपके नज़रे भी


बढ़ाई वो मेरी मुश्किलें थी…


पर उससे भी बड़ा


था सीखने का जज़्बा


कर दिखाने का जज़ज़्बा


जीतने का जज़ज़्बा…


ता की कल की बेटियां


घबराये ना, पीछे रह जाये ना


Gender @work... mind या body


हौसला कभी मिटे ना |

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